सोमवार, १० डिसेंबर, २०१२

बोध गया जहां बुद्ध को मिला था ज्ञान


बोध गया जहां बुद्ध को मिला था ज्ञान



विश्व में बोध गया को बौद्धों के महत्वपूर्ण धार्मिक और पवित्र स्थल के तौर पर जाना जाता है. यहीं बुद्ध को ज्ञान-प्राप्ति हुई थी.
गौतम बुद्ध को ज्ञान-प्राप्ति जिस बोधि वृक्ष के नीचे हुई, वह जगह आज ‘बोध गया’ नाम से पहचानी जाती है. 2002 में ‘यूनेस्को’ द्वारा र्वल्ड हेरिटेज घोषित की जा चुकी यह जगह बिहार की राजधानी पटना से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मौर्य सम्राट अशोक ने इस क्षेत्र को विकसित किया. यहां के बौद्धमठ को अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाया.

यहां अशोक स्तम्भ भी स्थित है. मुख्य आकर्षण महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष के अलावा यहां श्रीलंका, म्यामां और चीन के भी मंदिर हैं. इस जगह को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. यहीं पर भारत की सबसे ऊंची बुद्ध मूर्ति भी है, छह फुट ऊंचे कमल के फूल पर प्रतिष्ठापित है. माना जाता है कि मुख्य मंदिर में भगवान बुद्ध की जो मूर्ति है, उसे स्वयं उन्होंने ही बनाया है.

महाबोधि मंदिर

यह मंदिर बोधि वृक्ष के पूर्व में स्थित है. इसका आर्किटेक्चर गजब का भव्य है. इस मंदिर की कुल ऊंचाई 170 फुट है और इसके भीतरी चबूतरे पर छत्र बने हुए हैं, जो धर्म की प्रधानता का प्रतीक हैं. इस मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप सदृश है.

मंदिर के मुख्य हिस्से में बुद्ध की बहुत बड़ी मूर्ति पद्मासन अवस्था (बैठे हुए है, जो दाहिने हाथ से धरती को छू रहे हैं) में है. माना जाता है कि बुद्ध को इसी अवस्था में ज्ञान प्राप्त हुआ था. यह मूर्ति काले पत्थर की है. मंदिर परिसर में स्तूप बने हुए हैं, जो हर आकार के हैं. माना जाता है कि ये 2500 साल पहले के अवशेष हैं. मंदिर को घेरे हुए रेलिंग पत्थर की नक्काशीदार है, कहा जाता है कि ये ही बोध गया के सबसे पुराने अवशेष हैं.

इस मंदिर में सात स्थानों को चिह्नित किया गया है, जिनके बारे में माना जाता है कि बुद्ध ने ज्ञान-प्राप्ति के बाद सात सप्ताह यहीं व्यतीत किए. मुख्य मंदिर के पीछे बुद्ध की सात फुट ऊंची विराजमान मुद्रा में प्रतिमा है. यह प्रतिमा लाल बलुए पत्थर की है. माना जाता है कि सम्राट अशोक ने यहीं पर हीरे का राजसिंहासन लगवाया था और इसे धरती का नाभि-केंद्र कहा था. इस प्रतिमा के आगे बुद्ध के बड़े-बड़े पदचिह्न भी बने हुए हैं.

रतनगढ़

मंदिर के उत्तर-पश्चिम भाग में छतविहीन भग्नावशेष है, जिसे रत्नागढ़ कहा जाता है. यहां बुद्ध ने चौथा सप्ताह व्यतीत किया था. मान्यता है कि जब बुद्ध ध्यान में मग्न थे तो उनके शरीर से पांच रंग की किरणों निकलीं. इन्हीं रंगों का प्रयोग विभिन्न देशों ने यहां लगाए अपने पताकों में किया है.

बुद्ध ने मुख्य मंदिर से थोड़ी दूर स्थित अजपाला-निग्रोधा पेड़ के नीचे पांचवां सप्ताह और छठा सप्ताह मूचालिंडा झील के पास बिताया था. इस झील के बीचोंबीच बुद्ध की मूर्ति है, जिसमें एक सांप उनकी रक्षा कर रहा है. इसके बारे में कथा यह है कि बुद्ध तपस्या में इतने लीन थे कि वे बारिश में फंस से गए. तब सांपों के राजा मूचालिंडा ने उनकी रक्षा की.

पास में राजयातना पेड़ के नीचे बुद्ध ने सातवां सप्ताह बिताया. यहां बर्मा के दो निवासियों ने बुद्ध से आश्रय मांगा था. यहीं उन्होंने प्रार्थना के रूप में ‘बुद्धमं शरणम गच्छामि’ का जाप किया था.

मठ

तिब्बती मठ बोध गया का सबसे पुराना मठ है. बर्मी विहार में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा के अलावा दो प्रार्थना कक्ष भी हैं. यहां थाई मठ भी है, जिसकी स्थापना थाईलैंड के राजपरिवार ने की थी. इसे गोल्डन मठ भी कहा जाता है. दरअसल, इसके भीतरी छत को सोने के पानी से रंगा गया है. इंडोसन-निप्पन-जापानी मंदिर को लकड़ी के प्राचीन जापानी मंदिरों के आधार पर बनाया गया है.

यहां बुद्ध के जीवन को तस्वीरों के माध्यम से दिखाया गया है. चीनी मंदिर में बुद्ध की प्रतिमा सोने की है. भूटानी मठ की दीवारों पर नक्काशी का काम है. नवीनतम मंदिर वियतनाम का है. यहां बुद्ध की अवतार अवलोकितेश्वर की मूर्ति स्थापित है.

चंक्रमना

मुख्य मंदिर के उत्तरी भाग को चंक्रमना कहा जाता है. माना जाता है कि ज्ञान-प्राप्ति के बाद बुद्ध ने तीसरा सप्ताह यहीं बिताया था. यह भी माना जाता है कि जहां-जहां बुद्ध ने अपने पैर रखे, उस जगह पर कमल के फूल खुद ही खिल आए. यहां काले पत्थर का कमल का फूल भी है
महाबोधि वृक्ष

माना जाता है कि वर्तमान का बोधि वृक्ष असल बोधि पेड़ की पांचवीं पीढ़ी है, जिसके नीचे बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था. यहां वज्रासन भी है यानी स्थिरता की जगह. यह पत्थर का प्लेटफॉर्म है , जिसके बारे में मान्यता है कि बुद्ध बैठकर पूर्व की ओर देखते हुए ध्यान लगाते थे. 

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